bihan_brochures.pdf
CG ES GRAM UDYOG.pdf
CG ES GRAMIN VIKAS.pdf
CG ES SANSTHA GAT VIKAS SAGKARITA.pdf
CG Govt_Schemes.pdf
CIF_Policy.pdf
FI_RF_Policy.pdf
Hindi_NRLM.pdf
NRLM RBI.pdf
NRLM.pdf
RTI workshop (1).pdf
RTI_Act_Hindi (1).pdf
RTI_Book_CG_22.pdf
SHG_Concept_Management.pdf
SHGs 11Sutr.pdf
छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम, 1993.pdf
छत्तीसगढ़_पंचायत_राज_संशोधन_2019.pdf
छत्तीसगढ़_पंचायत_राज_संशोधन_अध्यादेश 2024.pdf
पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग का विभागीय प्रशासकीय प्रतिवेदन वर्ष 2024 - 25.pdf
सामाजिक अंकेक्षण इकाई
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी स्कीम की लेखा परीक्षा नियम 2011 की कंडिका 4(1) के तहत राज्य में सामाजिक अंकेक्षण इकाई का गठन सितम्बर 2013 में किया गया। छत्तीसगढ़ सामाजिक अंकेक्षण इकाई, छत्तीसगढ़ सोसायटी पंजीकरण अधिनियम 1973 की धारा 7 के अंतर्गत पंजीकृत स्वशासी संस्था है, जिसका पंजीयन क्रमांक 4611, माह फरवरी 2014 है।
छत्तीसगढ़ सामाजिक अंकेक्षण इकाई की गवर्निंग बॉडी(अधिशासी निकाय) का गठन मुख्य सचिव, छत्तीसगढ़ शासन की अध्यक्षता में किया गया जिसमें वरिष्ठ अधिकारी, सामाजिक अंकेक्षण विशेषज्ञ, शिक्षाविद तथा NGO के 11 प्रतिनिधि सदस्य शामिल है।
छत्तीसगढ़ सामाजिक अंकेक्षण इकाई के द्वारा महात्मा गाँधी नरेगा, प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण एवं सामाजिक न्याय एवं अधिकारीता विभाग अंतर्गत संचालित योजनाओ का सामाजिक अंकेक्षण किया जा रहा है। महात्मा गांधी नरेगा योजनांतर्गत राज्य में विगत वर्ष किये गये व्यय के अनुसार 0.5 प्रतिशत प्रशासनिक व्यय की राशि भारत सरकार, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा प्रत्येक वर्ष छ.ग. सामाजिक अंकेक्षण इकाई को सीधे आबंटित किये जाने का प्रावधान हैं जिसमें राज्यांश की राशि नहीं है। उक्त वर्ष संचनालय,प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा सामाजिक अंकेक्षण संपादित किए जाने हेतु प्रति ग्राम पंचायत 6678 रू0 निर्धारित किया गया है यह पूर्णतः राज्यांश है। छत्तीसगढ़ सामाजिक अंकेक्षण इकाई में सामाजिक अंकेक्षण कार्य हेतु कुल 586 पद स्वीकृत हैं।
समाजिक अंकेक्षण इकाई के उददेश्य:-
1. राज्य में सामाजिक अंकेक्षण प्रक्रिया को मजबूत करना और बढ़ाना ताकि सामाजिक अंकेक्षण शासकीय प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग बने।
2. लाभार्थी के अधिकारों पर आधारित समस्त विकास योजनाओं का सामाजिक अंकेक्षण सुनिश्चित करना।
3. समुदाय के सदस्यों का क्षमता वर्धन कर स्व-शासन की प्रक्रियाओं को सुदृढ़ करना।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
गांव की सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति की कल्पना बिना अच्छी सड़कों के करना संभव नहीं है। इसलिये आवश्यक है कि प्रत्येक गांव को बारहमासी सड़कों से जोड़ा जावे। अतः भारत सरकार द्वारा 25.12.2000 को ’’प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’’ इस उद्देश्य के साथ प्रारंभ की गई थी कि ‘‘सामान्य क्षेत्रों में 500 तथा आदिवासी क्षेत्र एवं आई.ए.पी. जिलों में 250 या इससे अधिक आबादी की समस्त बिना जुड़ी हुई बसाहटों को अच्छी बारहमासी सड़कों से जोड़ा जाना है‘‘। ग्रामीण विकास विभाग, भारत सरकार, नई दिल्ली द्वारा 09 अप्रैल 2014 को नक्सल प्रभावित 07 जिलों के 29 विकासखण्डों का चयन करते हुए इन विकासखण्डो में 100 से 249 जनसंख्या वाली बसाहटों को बारहमासी सड़कों से जोड़ने की स्वीकृति प्राप्त हुई है।
इसी प्रकार भारत सरकार द्वारा प्रधानमंत्री जनजातीय आदिवासी न्याय महा अभियान (PM-JANMAN) के तहत विशेष पिछड़ी जनजातीय समूह (PVTG) की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थिति बेहतर बनाने के उद्देश्य से 100+ से अधिक जनसंख्या वाली असंबद्ध बसाहटों को बारहमासी सड़क संपर्क सुविधा उपलब्ध कराना। इस योजना के तहत राज्य की कमार, पहाडी कोरवा, अबूझमाडिया, बैगा एवं बिरहोर जनजातियों को शामिल किया गया है।
प्रारंभिक अनुमानों के आधार पर वर्ष 2002 में मास्टर प्लान तैयार करने पर छत्तीसगढ राज्य मे कुल 27622 बसाहटें चिन्हित की गयी, इसमें से 12178 बसाहटें इस योजना के लिए पात्र थी। PMGSY-I अंतर्गत 10924 बसाहटों को लाभान्वित करने की स्वीकृति प्राप्त हुई, जिसमें से अब तक 10618 बसाहटें जोड़ी जा चुकी हैं।
उददेश्य :-
ग्राम सड़क सम्पर्क भारतवर्ष के ग्रामीण विकास का एक मूल अंग है। योजना प्रारंभ के समय छत्तीसगढ में तो सिर्फ 17 प्रतिशत के लगभग गांव बसाहटें ही डामरीकृत सड़कों के माध्यम से विकसित क्षेत्रों से जुड़ी हुई थी। PMGSY-I अंतर्गत 24 वर्षों में निर्मित सड़कों से राज्य में बाराहमासी सड़कों से जुड़ी बसाहटों की संख्या लगभग 97 प्रतिशत हो गई है।
प्रारंभिक अनुमानों के आधार पर वर्ष 2002 में मास्टरप्लान तैयार करने पर छत्तीसगढ राज्य मे कुल 27622 बसाहटें चिन्हित की गयी थी । वर्ष 2001 की जनगणना के अधिकांश आकड़े जनवरी 2006 में प्राप्त होने के पश्चात मास्टरप्लान का पुनः परीक्षण कराया गया जिसके आधार पर बसाहटों की संख्या 27622 आंकी गई है। इसमें से प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के निर्धारित लक्ष्यों के अनुक्रम तथा प्रधानमंत्री द्वारा घोषित भारत निर्माण कार्यक्रम के अंतर्गत सामान्य क्षेत्रों में 1000 या उससे अधिक आबादी की सभी बिना जुड़ी बसाहटें तथा आदिवासी क्षेत्रों में 500 या उससे अधिक आबादी की सभी बिना जुड़ी बसाहटों को बारामासी सड़क से जोड़ने का लक्ष्य रखा गया है । इसके अतिरिक्त सभी बाजार हाट केन्द्रों, चिकित्सा केन्द्रों एवं उच्च शिक्षा केन्द्रों को जोड़ने का कार्य भी इसी अवधि में पूर्ण किया जाना है ।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत सिर्फ अन्य जिला सड़कों एवं ग्राम सड़कों को सम्मिलित किया जा सकता है । शहरी क्षेत्र की सडकों को इस कार्यक्रम की परिधि से बाहर रखा गया है । इस योजना का मुख्य उददेश्य प्रत्येक बसाहट को कम से कम एक बारहमासी सड़क सम्पर्क उपलब्ध कराना है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत बिना जुड़ी बसाहट को प्राथमिकता देना है । सभी बिना जुड़ी बसाहटों के सम्मिलित होने के बाद ही गिटटीकृत सड़को से जुड़ी बसाहटों के उन्नयन का कार्य लिया जाना है ।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना नये दिशा-निर्देशानुसार जिन सड़कों में 100 वाहन से कम आवागमन है वहां डामरीकृत सतह की चैड़ाई 3.00 मीटर तथा जिन सड़कों में 100 वाहन से अधिक आवागमन है वहां सड़कों की चैड़ाई 3.75 मीटर किये जाने का प्रावधान है। दोनो सिथतियों में सड़क की ऊपरी चैड़ाई 6.00 मीटर ही रखा जाना है।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना की विषेषता :-
योजना के क्रियान्वयन हेतु राज्य स्तर पर छत्तीसगढ़ ग्रामीण सड़क विकास अभिकरण कार्यरत हैं, जो छत्तीसगढ़ सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियिम 19 के अंतर्गत एक पंजीकृत संस्था है। इस अभिकरण के मुख्यालय प्रमुख मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं उनके अधीनस्थ 04 मुख्य अभियंता तथा अन्य अमला पदस्थ हैं। इसके अतिरिक्त क्षेत्रीय स्तर पर 8 मंडल कार्यालय एवं जिला स्तर पर 41 समर्पित परियोजना क्रियान्वयन इकाई कार्यरत् हैं।
गुणवत्ता नियंत्रण हेतु त्रिस्तरीय व्यवस्था की गयी है। (i) प्रथम स्तर (जिला स्तर) पर परियोजना क्रियान्वयन इकाई इसके लिए जवाबदेह हैं। (ii) द्वितीय स्तर (राज्य स्तर) पर स्वतंत्र रुप से राज्य गुणवत्ता समीक्षक नियुक्त किया जाकर कार्यो का निरीक्षण किया जाता है । (iii) तृतीय स्तर (राष्ट्रीय स्तर) पर भारत सरकार द्वारा स्वतंत्र समीक्षा हेतु राष्ट्रीय गुणवत्ता समीक्षक को योजना के कार्यो के निरीक्षण हेतु भेजा जाता है।
प्रत्येक सड़क का राज्य गुणवत्ता समीक्षक द्वारा कम से कम तीन बार निरीक्षण करना अनिवार्य है। सिर्फ ऐसी सड़के जिनकी गुणवत्ता मानक स्तर की हो, को ही मान्य किया जाता है। प्रत्येक जिले में जिला स्तरीय सामग्री परीक्षण प्रयोगशालाएं भी स्थापित की गयी हैं। राज्य स्तर पर केन्द्रीय प्रयोगशाला स्थापित हैं तथा 28 चलित सामग्री परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा नियमित रुप से सड़कों की गुणवत्ता का परीक्षण किया जा रहा हैं। कार्यक्रम की प्रभावी समीक्षा के लिए आन लाइन प्रबंध और मानीटरिंग प्रणाली तैयार की गई है। इस हेतु समय-समय पर परियोजना क्रियान्वयन इकाईयों द्वारा अधतन आंकड़ों की प्रविषिट की जाती है ।
वेबसार्इट का विवरण निम्नानुसार है :- www.pmgsy.nic.in तथा https://omms.nic.in
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण)
1. स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) पृश्ठभूमि एवं अवधि:-स्वच्छ भारत मिशन राष्ट्र का एक महत्वाकांक्षी नियोग है। मिशन का मुख्य उद्देश्य एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना है जो खुले में शौचमुक्त होने के साथ संपूर्ण स्वच्छता के समस्त आयामों की प्राप्ति में भी सफल हो। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के उद्देश्यानुरूप शासन-प्रशासन, जन-प्रतिनिधियों, प्रदेश के कोने-कोने से सामने आए स्वच्छता वीरों एवं समुदाय की सक्रिय भागीदारी से पूरे प्रदेश में 32,39,197 ग्रामीण परिवारों में व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालयों का निर्माण पूर्ण हुआ एवं 04 जनवरी, 2018 को छत्तीसगढ़ राज्य ने खुले में शौचमुक्त स्थिति को प्राप्त कर उज्जर-सुग्घर, हमर छत्तीसगढ़' के स्वप्न को साकार किया। राष्ट्रीय लक्ष्य के अनुरूप 02 अक्टूबर, 2019 को महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के अवसर पर सपूर्ण राष्ट्र के खुले में शौचमुक्त होने के लक्ष्य की प्राप्ति की घोषणा की गई।
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के प्रथम चरण की प्राप्ति के पश्चात 01 अप्रैल, 2020 से 31 मार्च, 2025 तक के लिए पूरे राष्ट्र में स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के द्वितीय चरण की शुरूआत की गई है। मिशन का द्वितीय चरण मुख्य रूप से छुटे एवं बढ़े हुए परिवारों में शौचालयों की उपलब्धता, सामुदायिक शौचालयों के निर्माण, ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन, फीकल स्लज मैनेजमेंट, गोबरधन योजनांतर्गत बायोगैस संयत्रों के निर्माण एवं स्वास्थ्यकर व्यवहारों के प्रति जन-जागरूकता के सृजन पर केन्द्रित है। फेज का मुख्य उद्देश्य ऐसे ओडीएफ प्लस समुदायों की स्थापना करनी है जो खुले में शौचमुक्त हो, ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन उचित तरीके से हो रहा हो गाव साफ-सुथरा हो तथा गाव में स्वच्छता का प्रचार-प्रसार हो।
2.घटक एवं वित्तीय प्रावधान:-
2.1 व्यक्तिगत शौचालय: खुले में शौचमुक्त समुदायों का स्थायित्व बनाए रखने के क्रम में प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत ऐसे नवीन परिवार जो स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) निर्धारित पात्रता की श्रेणी में आते हैं. इन परिवारों के लिए शौचालय निर्माण हेतु अंतर्गत निर्धारित 12000 रू. अक्षरी बारह हजार रूपयो की प्रोत्साहन राशि प्रदाय किए जाने का प्रावधान N.H.H. या New Household Laterine के तौर पर किया गया है। व्यक्तिगत पारिवारिक शौचालयों के लिए स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अंतर्गत प्रोत्साहन राशि हेतु पात्रता की श्रेणी निम्नानुसार है:-
1. समस्त बी पी.एल परिवार
2 अनुसूचित जाति परिवार
3. अनुसूचित जनजाति परिवार
4. लघु एवं सीमान्त कृषक परिवार ।
5. भूमिहीन मजदूर परिवार ।
6. शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्तियों के परिवार ।
7. महिला मुखिया परिवार ।
शौचालयों हेतु हितग्राही स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की वेबसाईट https://swachhbharatmission.ddws.gov.in
के सिटीजन पोर्टल से सीधे आवेदन कर सकते हैं। आवेदनों के सत्यापन उपरात पात्र हितग्राहियों को प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान की जाती है। प्रोत्साहन राशि हितग्राही द्वारा शौचालय निर्माण किए जाने के उपरांत उसकी जियोटैगिंग होने पर डी.बी.टी. के माध्यम से सीधे प्रदान की जाती है।
2.2 सामुदायिक स्वच्छता परिसरः-
ग्रामीण क्षेत्रों में कोई भी परिवार / व्यक्ति शौचालय की सुविधा से वंचित ना रह जाए, खुले में मल त्याग पूरी तरह से समाप्त हो इसके साथ ही हाट बाजार, सामाजिक एवं पारिवारिक समारोहों हेतु शौचालयों की उपलब्धता सुनिश्चित करने की दिशा में सभी ग्रामों में आवश्यकता के अनुरूप सामुदायिक शौचालयों के निर्माण का प्रावधान किया गया है। सामुदायिक शौचालयों के निर्माण हेतु स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) से 2.10 लाख 15वे वित्त आयोग से 0.90 लाख इस प्रकार कुल 3.00 लाख रू अक्षरी तीन लाख रूपयों का प्रावधान है. मजदूरी हेतु मनरेगा से 50 हजार रु. का प्रावधान है। स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के वित्तीय प्रावधानों में केन्द्र एवं राज्य शासन के मध्य 60:40 की वित्तीय साझेदारी का निर्धारण किया गया है। सामुदायिक शौचालयों के रखरखाव की जिम्मेदारी का निर्वहन ग्राम पंचायतों द्वारा किया जाना है।
2.3 ठोस एवं तरल अपशिष्ट प्रबंधन
2.3.1 ठोस अपशिष्ट प्रबंधन :-
ग्रामीण क्षेत्रों में स्वच्छ सुंदर परिवेश के विकास के लिए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन पर विस्तृत योजना के साथ कार्य किया जा रहा है। प्रदेश की रणनीति के अनुसार घरों एवं सामुदायिक स्तर पर उत्पादित होने वाले कूड़े-कचरे का निपटात्त विकेन्द्रीकृत पद्धति से घरेलू एवं स्त्रोत के स्तर पर ही किए जाने को प्राथमिकता दी जा रही है। ऐसा ठोस अपशिष्ट जिसका निपटारा घरेलू एवं संस्थागत स्तर पर नहीं हो पाता है उसका प्रबर्धन पंचायतों में निर्मित संग्रहण केन्द्रो में स्व-सहायता समूहों के स्वच्छाग्रही रामूहों के माध्यम से किया जा रहा है। स्वच्छाग्रही समूह की महिलाएं ठोस अपशिष्टों को सर्वप्रथम जैविक एवं अजैविक वर्गों में पृथ्यकीकृत करते हुए जैविक अपशिष्टों को नाडेप एवं वर्मी कम्पोसिटंग जैसे माध्यमों से खाद में परिवर्तित करती है अजैविक कचरे को कचरे के प्रकार के अनुसार विभिन्न श्रेणियों में बांटा जाता है एवं इस प्रकार विभिन्न श्रेणियों में एकत्रित कचरे को कबाड़ीवाले को बेच दिया जाता है इस प्रकार सृजित आय से एवं घरों, दुकानों एवं अन्य स्थानों से कचरे संग्रहण हेतु लिए गए शुल्क से स्वच्छाग्रही समूह की दीदीयों के मानदेय की पूर्ती होती है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन हेतु स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) से 5000 तक की आबादी के लिए 60 रु. प्रति व्यक्ति तथा 5000 से अधिक की आबादी के लिए 45 रु. प्रति व्यक्ति का प्रावधान है।
2.3.2 तरल अपशिष्ट प्रबंधन :-
ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की तरह ही गंदे पानी का निपटारा भी विकेन्द्रीकृत पद्धति से घरेलू एवं स्त्रोत के स्तर पर ही किए जाने को प्राथमिकता दी जा रही है। अपशिष्ट जल के निपटारे हेतु परिवारों एवं समुदाय को बागवानी, सोक्ता गड्ढा जैसे स्त्रोत के स्तर पर ही निपटारे के मध्यमों को अपनाए जाने के लिए प्रेरित किया जाता है। ऐसा धूसर जल जिसका निपटारा स्त्रोत के सार पर नहीं हो पाता उसके निपटारे हेतू वेस्ट स्टेबलाईजेशन पॉस, DEWAT सिस्टम जैसी पद्धतियों का प्रयोग किया जा रहा है। तरल अपशिष्ट प्रबंधन हेतु स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) से 5000 तक की आबादी के लिए 280 रु. प्रति व्यक्ति तथा 5000 से अधिक की आबादी के लिए 660 रु. प्रति व्यक्ति का प्रावधान है।
2.3.2 प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट : - ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक की बढ़ती पहुँच से प्लास्टिक कचरे के निपटान की समस्या के दृष्टिगत ठोस अपशिष्ट प्रबंधन अंतर्गत प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट एक महत्वपूर्ण घटक है। प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट तीन मुख्य बिन्दुओं पर कार्य किया जाना हैः-
अ. जागरूकता सृजन : - प्लास्टिक के उपयोग को सीमित किए जाने, सिंगल यूज प्लास्टिक के प्रयोग को हतोत्साहित किए जाने एवं प्लास्टिक कचरे के सही निपटारे के प्रति समुदाय में जागरूकता सृजन।
ब. प्रबंधन :- प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन हेतु विकासखंड के स्तर पर प्लास्टिक प्रबंधन ईकाईयों की स्थापना का प्रावधान है, प्रति ईकाई 16 लाख रूपयों की लागत का प्रावधान किया गया है। पंचायतों से निकलने वाले प्लास्टिक कचरे को एकत्र किया जाकर इन प्लास्टिक प्रबंधन ईकाईयों के माध्यम से इनकी शैडिंग, बेलिंग किया जाकर इन्हें पुनः चक्रण के लिए बड़ी ईकाईयों को प्रेषित कर दिया जावेगा। प्लास्टिक कचरे को सीमेंट फैक्ट्री की भट्ठी में ईंधन के तौर पर उपयोग किए जाने एवं सडकों के निर्माण के दौरान बिटप्लास्ट के रूप में उपयोग किया जाना भी एक अच्छा प्रावधान है।
स. प्लास्टिक कचरे को जलाए जाने पर प्रतिबंध :- माननीय राष्ट्रीय हरित अधिकरण एवं प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के अनुसार प्लास्टिक कचरे को खुले में जलाया जाना पूर्णत्तः प्रतिबंधित है। इस आशय का निर्देश प्रदेश की समस्त पंचायतों को दिया गया है।
2.3.3 फीकल वेस्ट मैनेजमेंट :-
स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) की मार्गदर्शिकानुरूप ग्रामीण क्षेत्रों में पर्यावरणीय दृष्टिकोण से सुरक्षित लीचपिट शौचालयों के निर्माण को प्राथमिकता दी गई है, तथापि विभिन्न घरों विशेषकर शहरी क्षेत्रों से लगी पंचायतों में रोप्टिक टैंक शौचालयों का निर्माण हुआ है। इन सेप्टिक टैंकों से निकलने वाले फीकल वेस्ट के सहीं निपटारे के लिए फीकल वेस्ट मैनेजमेंट स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) फेज-2 का एक महत्वपूर्ण घटक है। प्रदेश में फीकल स्लज मैनेजमेंट हेतु जिलों की आवश्यकता के अनुरूप पंचायतों के संकुलों के स्तर पर कार्य किए जाने की योजना है। पंचायतों के छोटे संकुलों में फीकल वेस्ट के मैनेजमेंट हेतु ट्रेचिंग जैसी पद्धति एवं बड़े संकुलों के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट जैसे प्रावधानों पर कार्य किए जाने की योजना है। फीकल स्लज मैनेजमेंट हेतु स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण से प्रति व्यक्ति 230 रु. का प्रावधान है।
2.3.4 रेट्रोफिटिंग :-
खुले में शौचमुक्त समुदायों का स्थायित्व बनाए रखने एवं निर्मित शौचालयों से किसी भी प्रकार के पर्यावरणीय प्रदूषण को रोकने के उद्देश्य से सेष्टिक टैक शौचालयों को लीचपिट से जोड़े जाने एवं एकल गड्ढे वाले लीचपिट शौचालय मे दूसरे गडढे का निर्माण तथा शौचालयों को तकनीकी तौर पर सही किए जाने का कार्य रेट्रोफिटिंग के अंतर्गत किया जाना है। रेट्रोफिटिंग का कार्य 15वे वित्त आयोग, मनरेगा, एवं अन्य उपलब्ध मद से किया जाना है।
2.3.5 गोबरधन :-
ग्रागीण क्षेत्रों में उपलब्ध जैविक अपशिष्टों को बायोगैस में परिवर्तित करते हुए उर्जा उत्पादन एवं अपशिष्टों के समुचित निपटान के उद्दे श्य से जिलों में बायोगैस संयत्रों की स्थापना के माध्यम से बायोगैस के सफल मॉडल की पायलेटिंग की जानी है। पायलेटिंग उपरांत ग्रामीणों को स्वयमेव बायोगैस संयत्रों की स्थापना एवं शासन की विभिन्न योजनाओं से लिंकेज के लिए प्रोत्साहित किया जाना है। बायोगैस संयत्रों के मॉडलों की स्थापना हेतु प्रति जिला अधिकतम 50 लाख रूपए के बजट का प्रावधान है।
प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीणः-
भारत सरकार, ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा ग्रामीण आवास कार्यक्रम “इंदिरा आवास योजना” को पुनर्गठित कर दिनांक 1 अप्रैल 2016 से “प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण” का क्रियान्वयन किया जा रहा है। वर्तमान में इस योजना के केन्द्रांश व राज्यांश का अनुपात 60:40 है।
उददेश्य : :-
योजना का मूल उद्देश्य सभी बेघर, कच्चे तथा टूटे-फुटे मकानो में रहने वाले परिवारो को बुनियादी सुविधा से युक्त पक्का आवास उपलब्ध कराया जाना है।
प्रमुख बिन्दु:-
1.यह एक केन्द्र प्रवर्तित योजना है। इकाई सहायता के लागत का वहन केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच 60:40 के आधार पर किया जाता है।
2.हितग्राहियो को आवास निर्माण हेतु प्रदाय की जाने वाली किश्तों की राशि का निर्धारण भारत सरकार द्वारा किया जाता है ।
3. आवास निर्माण हेतु लक्ष्य/स्वीकृति का निर्धारण भारत सरकार द्वारा किया जाता है।
4. आवासों का निर्माण स्वयं हितग्राही द्वारा किया जाता है। हितग्राहियों को राशि Fund Transfer Order (FTO) के माध्यम से सीधे उनके बैंक खाते में अंतरित की जाती है।
5.आवासों के निर्माण हेतु कोई डिजाईन निर्धारित नहीं है सिवाय इसके कि आवास का कुर्सी क्षेत्र 25 वर्गमीटर होना चाहिये । आवास इस अर्थ में पक्का होना चाहिए, कि रख-रखाव से कम से कम 30 वर्ष तक सामान्य टूट-फूट को सहन कर सके। छत स्थाई सामग्री की होनी चाहिए।
6. गाईडलाईन के अनुसार न्यूनतम 60 प्रतिशत अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति परिवारों के आवास निर्माण पर उपयोग करने का प्रावधान है। इसके अलावा राशि का 15 प्रतिशत अल्पसंख्यकों के लिए एवं 3 प्रतिशत निशक्तजनों के लिये भी उपयोग किया जाना प्रावधानित है ।
7. आवास, पत्नी अथवा संयुक्त रूप से पति और पत्नी के (विधवा/अविवाहित/अलग रह रहे व्यक्ति के मामले को छोड़कर) नाम से आबंटित होना चाहिये ।
8. आवास के निर्माण के साथ-साथ स्वच्छ शौचालय (स्वच्छ भारत अभियान/मनरेगा) बनाया जाना अनिवार्य है ।
9. योजनांतर्गत वर्ष 2016-23 हेतु आवास निर्माण हेतु Non IAP (सामान्य क्षेत्र) एवं IAP दुर्गंम क्षेत्र) जिलो हेतु ईकाई लागत क्रमशः 1.20 लाख एवं 1.30 लाख है। वर्ष 2024-25 हेतु यह लागत क्रमशः 1.20 लाख हो चुकी है।
10.प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण अंतर्गत ग्राम स्तर पर हितग्राहियों के स्वीकृति आदेश जारी किये जाने से लेकर आवास निर्माण कार्य पूर्ण होने तक कार्य की निगरानी, पर्यवेक्षण एवं अन्य संबंधित कार्यवाहियों का सम्पादन आवास मित्र/समर्पित मानव संसाधन द्वारा कराया जा सकेगा। इस हेतु उन्हें रू. आवास पूर्णता पर 1000 प्रति आवास प्रोत्साहन राशि के रुप में प्रधानमंत्री आवास योजना- ग्रामीण के प्रशासनिक मद की राशि से भुगतान किया जावेगा।
हितग्राहियों का चयन :-
प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण अंतर्गत पात्र हितग्राहियों का चयन सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना-2011 एवं आवास प्लस में 2018 में शामिल सूची से किया जाता है।
वरीयता :-
• स्वतः शामिल परिवार में शामिल परिवार जैसे कि बेघर परिवार निराश्रित भिक्षुक, विशेष पिछडी जनजाति ,बंधुआ मजदूर, हाथ से मैला ढोने वाले परिवार, 01 एवं 02 कमरे वाले कच्ची छत/कच्ची दिवार वाले परिवार।
• परिवार में 16 से 59 वर्ष के बीच की आयु का कोई वयस्क सदस्य नहीं है।
• महिला मुखिया वाले परिवार जिसमें 16 से 59 वर्ष के बीच की आयु का कोई वयस्क पुरूष सदस्य नहीं है।
• निःशक्त सदस्य वाले और किसी सक्षम शरीर वाले वयस्क सदस्य से रहित परिवार।
• ऐसे परिवार जहां 25 वर्ष से अधिक आयु का कोई वयस्क साक्षर नहीं है।
• भूमिहीन परिवार जो अपनी ज्यादातर कमाई दिहाड़ी मजदूरी से प्राप्त करते है।
इसके अतिरिक्त निम्न उल्लेखित बिन्दुओं में यदि कोई परिवार शामिल हो तो, वह स्वतः ही अपात्रता की श्रेणी में अंकित किया जावेगाः-
Ø मोटरयुक्त तिपहिया/चौपहिया वाहन।
Ø मशीनीकृत तिपहिया/चौपहिया कृषि उपकरण।
Ø रू. 50,000 अथवा इससे अधिक ऋण सीमा वाले किसान क्रेडिट कार्ड।
Ø वे परिवार, जिनका कोई सदस्य सरकारी कर्मचारी हो।
Ø सरकार के पास पंजीकृत गैर-कृषि उद्यम वाले परिवार।
Ø वे परिवार, जिनका कोई सदस्य 15,000/- रू. से अधिक प्रतिमाह कमा रहा हो।
Ø आयकर देने वाले परिवार।
Ø व्यवसाय कर देने वाले परिवार।
Ø वे परिवार, जिनके पास 2.5 एकड़ या इससे अधिक सिंचित भूमि हो।
Ø दो या इससे अधिक फसल वाले मौसम के लिए 5 एकड़ या इससे अधिक असिंचित भूमि हो।
टोल फ्री हेल्पलाईन नंबरः-
हितग्राहियो के समस्या निराकरण एवं योजना से सम्बंधित जानकारी हेतु राज्य स्तर पर टोल फ्री नंबर 18002331290 का संचालन किया जा रहा है।
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन(NRLM)
महिलाओं को स्व-सहायता समूह में जोड़ने का विशेष अभियान :-
राज्य में योजना प्रारंभ से अभी तक 2,69,343 स्व-सहायता समूह का गठन कर कुल 28,15,726 परिवारों को योजना से जोड़ा गया है। शेष परिवारों को स्व-सहायता समूह में जोड़ने हेतु विशेष अभियान चलाया जा रहा है तथा वित्तीय वर्ष 2024-25 के अंत तक एनआरएलएम लक्षित परिवारों को शत्-प्रतिशत् जोड़ा जाना है।
महिला स्व-सहायता समूहों का वित्तीय समावेशन :-
राज्य में योजना प्रारंभ से अब तक कुल 2,29,848 महिला स्व सहायता समूहों को राशि 344.77 करोड़ रूपये चक्रिय निधि, 1,35,354 महिला स्व सहायता समूहों को राशि 1,045.47 करोड़ रूपये सामुदायिक निवेश निधि एवं वित्तीय वर्ष 2024-25 में 71,001 स्व सहायता समूहों को राशि 1,145.47 करोड़ रूपये का बैंक ऋण प्रदाय किया गया है।
लखपति महिला पहल :-
वित्तीय वर्ष 2024-25 में 2.00 लाख महिलाओं को विभिन्न आजीविका मूलक गतिविधियों (कृषि, ऑफ फार्म एवं गैर कृषि) के माध्यम से जैसे - कृषि, वनोपज, पशुधन, लघु उद्यम एवं कौशल प्रशिक्षण इत्यादि को समेकित करते हुए समुह सदस्य परिवार की वार्षिक आय को रूपये 1.00 लाख से अधिक किये जाने का लक्ष्य रखा गया है।
समुदाय आधारित संवहनीय कृषि :-
राज्य में योजना प्रारंभ से अब तक 11,64,222 महिला किसानों को जोड़ा गया है। इन महिला किसानों को कृषि सखियों द्वारा रसायनमुक्त कृषि, फसल चक्र, फसल चयन, बीज उपचार, रोग कीट प्रबंधन, एग्री न्युट्री गार्डन, छोटे पशु जैसे बकरी मुर्गी, बतख इत्यादि के बारे में प्रशिक्षण प्रदाय कर पोषण एवं आय को बढ़ावा दिया गया। वित्तीय वर्ष 2024-25 में 1,19,041 महिला किसान को संवहनीय कृषि से जोड़ा गया है।
नमो ड्रोन दीदी :-
नमो ड्रोन दीदी योजनान्तर्गत भारत सरकार ग्रामीण विकास मंत्रालय, नई दिल्ली द्वारा चयनित कंपनी- इफ्को द्वारा राज्य की 14 महिला किसानों का चयन कर प्रशिक्षण प्रदाय कर 14 ड्रोन प्रदाय किया गया है। वर्तमान में समस्त 14 महिला किसान ड्रोन दीदी के रूप में कार्यरत है।
सामाजिक समावेशन एवं सामाजिक विकास
सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित परिवारों यथा - विशिष्ट पिछड़ी जनजाति, दिव्यांग एवं वृद्धजन, महिला मुखिया एवं भूमिहीन परिवारों को प्राथमिकता आधार पर स्व-सहायता समूहों में समावेशन किया जा रहा है। जेण्डर इंटीग्रेशन के तहत हिंसा, भेदभाव, शिक्षा, स्वास्थ्य, हक एवं अधिकार इत्यादि पर कार्य किया जा रहा है। वर्तमान में 30 जिलों के 37 विकासखंड में संगवारी जेण्डर रिसोर्स सेन्टर का संचालन किया जा रहा है तथा नई चेतना-जेण्डर अभियान 3.0 का क्रियान्वयन प्रदेश के समस्त जिलों में किया गया है, जिसका प्रमख उद्देश्य महिलाओं के ऊपर हो रही जेण्डर आधारित हिंसा में कमी लाना एवं महिलाओं के लिए सुरक्षित वातावरण निर्मित करना।
दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजनान्तर्गत :-
राज्य में योजना प्रारंभ से अब तक (DDU-GKY) कुल 63,454 हितग्राही प्रशिक्षित एवं कुल 38,684 नियोजित हितग्राही योजना का लाभ ले चुके हैं।
उत्पादक समूह (PG)
योजना का विवरण -
उत्पादक समूह अंतर्गत प्राथमिक उत्पादकों का सामूहिकता के आधार पर गठन, व्यावसायिक तौर पर समस्त उत्पादन का एकत्रीकरण आवश्यकता अनुसार मूल्य संवर्धन, प्राथमिक प्रसंस्करण व विपणन गतिविधियों को अपनाते हुये उत्पादकों (विशेषतः महिला उत्पादकों) की आर्थिक और सामाजिक स्तर को मजबूत बनाना है।
पात्रता -
ऐसे महिला किसान जो स्व सहायता समूह की सक्रिय सदस्य हो।
वित्तीय सहायता -
उत्पादक समूह अंतर्गत राशि रूपये 2.00 लाख रुपये दिया जाता है, जिसमें 1.50 लाख रूपये कार्यशील पूंजी तथा 50,000 रुपये आधारभूत संरचनाओं के लिए है।
अद्यतन जानकारी -
योजनांतर्गत अब तक कुल 1,601 उत्पादक समूहों का गठन कर कुल 56,035 महिला किसानों को जोड़ा गया है।
कृषक उत्पादक कंपनी (FPC)
योजना का विवरण -
छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत महिला कृषकों के उत्पाद के मूल्य संवर्धन एवं विपणन हेतु लघु एवं सीमांत महिला कृषक उत्पादकों को बाजार से जुड़ाव एवं ऋण प्राप्ति आदि चुनौतियों से उभारने हेतु महिला कृषक उत्पादक कंपनी का गठन किया गया है।
पात्रता -
ऐसे महिला किसान जो स्व सहायता समूह की सक्रिय सदस्य हो।
अद्यतन जानकारी -
योजनांतर्गत राज्य के 15 जिलों (यथा-बस्तर, सरगुजा, सूरजपुर, राजनांदगांव, धमतरी, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई, कोण्डागांव, कोरिया, बलरामपुर, कांकेर, जशपुर, गरियाबंद, दंतेवाड़ा, रायपुर, रायगढ़) में कृषक उत्पादक कंपनी (FPO) का गठन कर अब तक कुल 45,655 महिला किसानों को शेयर धारक के रूप में जोड़ा गया है।
10K FPO
भारत सरकार, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, कृषि सहकारिता एवं किसान कल्याण विभाग, नई दिल्ली द्वारा 10 हजार FPO का गठन किया जाना है, जिसमें से राज्य के 28 जिलो के 50 विकासखण्डों में FPO गठन किया गया है, जिसमें अब तक कुल 15,823 महिला किसानों को जोड़ा गया है।
परियोजना उद्देश्य -
छोटे एवं मध्यम महिला किसानों का आजीविका संवर्धन कर आय में वृद्धि, कमोडिटी (मक्का, गेंहूँ, धान) हेतु मार्केट की उपलब्धता।
शेयर धारक - कम से कम 300 महिला किसान होगें।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना:-
देश के ग्रामीण क्षेत्रों में निवासरत परिवारों की आजिविका को सुरक्षा प्रदान करने हेतु महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारटी अधिनियम 2005, दिनांक 07 सितम्बर 2005 को जारी की गई । महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी अधिनियम 2005 की धारा 4 (1) अंतर्गत राज्य में 2 फरवरी 2006 से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना छत्तीसगढ़ में प्रारंभ की गई । छत्तीसगढ़ में 02 फरवरी 2006 से प्रथम चरण में 11 जिले (बस्तर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, धमतरी, जशपुर, कांकेर, कबीरधाम, कोरिया,रायगढ़, राजनांदगांव एवं सरगुजा), द्वितीय चरण में दिनांक 01 अप्रैल 2007 से चार जिले (रायपुर, जांजगीर-चांपा, कोरबा एवं महासमुंद) तथा तृतीय चरण में दिनांक 01 अप्रैल 2008 से राज्य के समस्त जिलों में योजना प्रभावशील है।
उददेश्य :-
(1) अधिनियम के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्र के परिवारों को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिवस का, व्यस्क सदस्यों को अकुशल मानव श्रम रोजगार सुनिशिचत करना एवं स्थायी परिसम्पतितयों का सृजन करना।
(2) छत्तीसगढ़ राज्य में महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत 100 दिवस से बढ़ाकर 150 दिवस रोजगार प्रदाय किया जा रहा है। अतिरिक्त 50 दिवस पर होने वाला व्यय राज्य शासन द्वारा वहन किया जा रहा है।
(3)किसी भी ऐसे ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य जो अकुशल शारीरिक श्रम करने को तैयार है उनके द्वारा आवेदन किये जाने के 15 दिवस के भीतर रोजगार मुहैया कराये जाने की गारंटी लागू होती है।
(4)काम की मांग करने वाले आवेदक को 15 दिवस के भीतर कार्य उपलब्ध नहीं होने पर बेरोजगारी भत्ता दिया जाता है। बेरोजगारी भत्ता प्रथम 30 दिवस हेतु न्यूनतम मजदूरी दर का एक चौथाई होता है एवं 30 दिवस के उपरांत न्यूनतम मजदूरी दर का आधा होता है। इस हेतु राज्य द्वारा ष्महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार बेरोजगारी भत्ता नियम-2013 का छत्तीसगढ़ राजपत्र में प्रकाशन किया गया है।
(5) योजना के अंतर्गत मजदूरी का आधार बेस्ड भुगतान किया जाता है।
(6)योजनांतर्गत वर्तमान में रू 243- प्रति दिवस मजदूरी दर भारत सरकार द्वारा निर्धारित किया गया है।
(7) योजनांतर्गत ग्राम पंचायत स्तर पर मजदूरी एवं सामग्री का 60:40 के अनुपात में राशि व्यय का प्रावधान है। कुल व्यय का 60% कृषि एवं सम्बंधित गतिविधि में किये जाने का प्रावधान है ।
पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व :-
(1) भारत सरकार के निर्देशानुसार पारदर्शिता सुनिशिचत करने हेतु राज्य में पृथक से सामाजिक अंकेक्षण इकाई का गठन किया गया है।
(2) महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत प्राप्त शिकायतों का निराकरण हेतु ''छत्तीसगढ़ ग्रामीण रोजगार गांरटी शिकायत निवारण नियम, 2012'' का छत्तीसगढ़ राजपत्र में 11 मई 2012 को प्रकाशन किया गया है।
(3) शिकायतों के तत्काल निपटारे के लिये राज्य एवं जिला स्तर पर हेल्प र्लाईन टोल फ्री नम्बर (1800-233-2425, 0771-2960317) की व्यवस्था की गई है।
(5) पारदर्शिता तथा Realtime MIS अधतन करने के उददेश्य से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी हेतु पूरे राज्य में National Mobile Monitoring
System (NMMS) का प्रयोग किया जा रहा है।
(6) महात्मा गांधी नरेगा की धारा 27 के तहत योजना क्रियान्वयन से संबंधित शिकायतों के निवारण (निपटारे) के लिए जिला स्तर पर योजनांतर्गत लोकपाल की नियुक्ति का प्रावधान है।
(7) जिलों के लोकपाल द्वारा पारित अवार्ड के विरूद्ध सुनवाई हेतु राज्य स्तर पर त्रिसदस्यीय अपीलिय प्राधिकारण की व्यवस्था है।
(8) आमजन के उपयोग हेतु Janmanrega App उपलब्ध है जिसे योजना की वेबसाइट एवं Playstore से Download किया जा सकता है